भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूर देश उड़ गये पंछी / नीता पोरवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:12, 22 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीता पोरवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर शाम
झर गये हरेक पत्ते से
पूछती हूँ
झर जाने की वज़ह

गुनगुना देती हूँ
इक गीत उनके कानों में
और ले लेती हूँ वादा
फिर उनसे सब्ज़ रहने का

झर न जाए
कहीं कोई पत्ता
सो चुरा लेती हूँ
हवाओं से नमी
सरका देती हूँ
जमीन में दबी
गुल्लक में

बादलों को परे कर
लपक लेती हूँ
कुछ सुनहले सिक्के
और रख देती हूँ
उनकी हथेलियों में

क्योंकि
गर होंगे पत्ते
तो मुमकिन है कि
लौट आयें
दूर देश उड़ गये पंछी