भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागोॅ मुसाफिर / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 24 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोर भेलै अबेॅ जागोॅ मुसाफिर
राम नाम तोंय सुमरोॅ मुसाफिर

सुतिये सुती तोंय रात बितैल्हेॅ
परभु चरणों में लोगोॅ मुसाफिर

सांस-सांस जपोॅ नाम के माला
करमों के धुवोॅ दागोॅ मुसाफिर

मौका चुकला पर मन पछतैथौं
गुरू सेॅ नेह तोंय करोॅ मुसाफिर

सगा संबंधी काम नै ऐत्हौं
‘राम’ विचारवान बनोॅ मुसाफिर।