भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुती गेलै सदभावना की करौं / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:29, 24 सितम्बर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुती गेलै सदभावना की करौं
मिठी गेलैं संभावना की करौं।

शांत समुद्र में हम्में छी अशांत
जगी रहलोॅ छै वासना की करौं।

सत्य के दीया तेॅ बुझै पर छै
झूठ के बयार बहाना की करौं

जगत के रचै वाला कानै छै
कानै छै सब दीवाना की करौं

‘राम’ बहै करूणा धार भूमि पर
गीता ऐसनों सुनाना की करौं।