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पावस बरसै फुहार, दिल हुलसै हमार / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
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पावस बरसै फुहार, दिल हुलसै हमार
झींगुर करै झनकार पिछुवड़िया में
रात बड्डी डरावनी, नींद अँखिया न आनी
रात रानी गमकै फुलवरिया में
घन गरजै गगन, दामिनी दमकै सरंग
मोर जिया डरै छै अकेली कोठरिया में
जैसंे जन बिना मीन, नदी बिना वारि
वैसें पिया बिना हम्में संसरिया में
हे मेघ! सुनोॅ हमरी खबरिया
पहुँचाय दौ सनेश पिया नगरिया में