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ऐलै बसंत आवोॅ सखि / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
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ऐलै बसंत आवोॅ सखि, सब मिलि खेलोॅ होरी॥टेक॥
गृह काजोॅ में भूलि गैलों मनों में ताप बहोरी।
जे-जे खेललोॅ होरी श्याम संग, हुनको भाग्य बड़ोरी॥1॥
तजलों आज काज सब घर के, लाज्हौ केॅ दूर धरो री।
जों दिन फागुन बीतये जायेॅ, फिर पाछे पछितायोरी।
सत्संगति वृंदावन जायके, श्यामों के खोज करोरी॥2॥
जोग जुगति से हुनका घेरोॅ, जावै नै पारेॅ बहो रही।
बढ़िया से पकडोॅ मन पिचकारी, ध्यानों से रंग भरोरी।
प्रेम गुलाल मुख ऊपर रगड़ोॅ, आनंद रस में डुबोरी॥3॥