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औघड़ ऐसनों रूप बनैलोॅ / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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औघड़ ऐसनों रूप बनैलोॅ अजूबे हिनकोॅ हाल छै।
हम्में नै जानै छेलां हो बाबा, ई भोला कंगाल छै।
भांग-धतूरा खाय बौरहवा, बसहा के सवारी छै।
कमर में डमरू हाथोॅ में तिरछूल, मदारी जेसनोॅ चाल छै।
हम्में नै जानै छेलां हो बाबा, ई भोला कंगाल छै।
कैलास पहाड़ोॅ पर पार्वती संगें एक्के आसन बेहाल छै।
गोदी में गणपति पार्वती मैया, शंकर मालो-माल छै।
हम्में नै जानै छेला हो बाबा, ई भोला कंगाल छै।
माथा पर चनरमा विराजै, जटा में गंगाधार छै।
अंग विभूति रमैलें बाबा, गला में रूद्रमाल छै।
हम्में नै जानै छेलां हो बाबा, ई भोला कंगाल छै।