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श्रमवीया / शिवनारायण / अमरेन्द्र

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प्रभु!
कटि टा आरो वक्त दा
कि हम्में बढ़ेॅ सकौं
आपनोॅ गन्तव्योॅ दिश।

चारो कदम चलोॅ नै पारलौं
कि थिर होलै हमरोॅ गोड़
रही गेलै दूरी नाँपे लेॅ
तोहें तय जे करी देलेॅ छेलौ
कहीं कोय कही नै उठेॅ कि
नै चलेॅ पारै के
लाचारिये में
हम्में खींची लेलियै आपनोॅ गोड़।

लांछण रोॅ हेनोॅ दुख के
भार नै दा, प्रभु!
कटि टा आरो वक्त दा
कि हम्में बढ़ेॅ सकौ
आपनोॅ गन्तव्य दिश।

हमरा में घोर श्रम रोॅ
डालोॅ बीया
कि गाछ-गाछ बनी कॅे
ऊ गजुरी उठेॅ
जहाँ पंछी सिनी रोॅ हुएॅ नेह
घाट-घाट के वाट नै जानौ
बस चलतेॅ रहौं
अनन्त-अछोर!
रास्ता नै रोकोॅ, प्रभु!
कटि टा आरो वक्त दा
कि हम्में बढेॅ सकौं
आपनोॅ गन्तव्योॅ दिश।

तोरोॅ अनन्त उपहार नीचें
दबलोॅ
जे आपनोॅ जानी देलौ
चलौं क्षितिज रोॅ लाली ले लेॅ
करौं अभिषेक वही सें तोरोॅ
आर-पार के बात नै जानौं
कोय्यो हमरा कत्ते तोड़ौ
तोहें नै तोड़ोॅ, प्रभु!
कटि टा आरो वक्त दा
कि हम्में बढ़ेॅ सकौं
आपनोॅ गन्तव्योॅ दिश।