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कंगाल पथिक / शिवनारायण / अमरेन्द्र

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कोय्यों हौलेॅ सें हाँक देलकै
आरो हम्में
भावलोॅ भावोॅ के साथ
लौटी गेलां
तहियो
हेनोॅ लागै छै
कि
हमरोॅ कोय छाया नै
दिन के खसला पर
कभियो-कभियो
एक नटखट हवा
हमरोॅ टोपी
उड़ाय लै जाय लेॅ चाहै छै
कि
टोपी में
छुपलोॅ कंगाल पथिक
सिर सें गोड़ तांय
लाजोॅ सें लाल होय जाय छै।