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चलोॅ हो मांझी / शिवनारायण / अमरेन्द्र

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सनसन करलें हवा बहै छै
मेघो छैलोॅ चारो ओर
चलोॅ हो मांझी पूर्वे छोर!

के जानेॅ, युग कत्तेॅ बितलै
घर-ऐंगन केॅ छोड़ला सें
हट्टो-हट्टो हम्में आबेॅ
सगा-नेह केॅ तोड़ला सें
बेटिया केरोॅ तोतली बोली
रही-रही केॅ याद आबै
चाहौं, सब कुछ बांधी-बूंधी
लौटौं घर केॅ धाम-इंजोर।

केकरोॅ-केकरोॅ कथा सुनाबौं
सबके आपनोॅ एक कथा
रेहने पर सब पड़लोॅ होलोॅ
मुक्ति के नै कहूँ प्रथा
अपने टा सब मुलुक सजावै
तहीं देश परदेश लगै छै
सबकेॅ एक दिन घर आनै छै;
कायम कोॅन जवानी-जोर।
घर में घर के बात नै रहलै
बाहर, मन के चाहे नै छै
जे-जे सपना केॅ दिखलैलकै
ओकरो सब के थाहे नै छै
देस पराया हेनोॅ लागै
आपनोॅ ठो देलकै नै काम
सूर-कबीरो, तुलसी-मीरा
सें मन भींगै पोरम पोर।