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सभ्यता मूंखे / अनन्द खेमाणी

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नफ़रत ऐं प्रेम जो
निफ़ाक़ सेखारियो
मूं नफ़रत ऐं प्रेम जे
निफ़ाक़ खे मिटाए
इत्तिहाद घड़ियो
ऐं मूं
मज़हब
मुल्क
नसुल ऐं
ईमान जे आधार ते
अंधा-धुंध
ॿारनि
बुढनि
वॾनि
नंढनि
औरतुनि
मर्दनि
आलिमनि
जाहिलनि
जो
क़तल-ए-आम कयो
ऐं
सभ्यता खां
ग़ाज़ी थियण जो
हकु़ तलब कयो