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कारे शुक्रवार जे सूरज खे / जयन्त रेलवाणी

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जयद्रथ वध जियां
उभिरियो हो अजु सूरजु
घनघोर ऊंदाहीअ बाद
चिमकाट कन्दे

रथ-भीनी ॼिभ पखेड़ी!
पर, उन रोशनीअ मंझि जे
कारे शुक्रवार
मातमु फहलायो हो पांडवनि में!
न रहियो हो भेदु को
सेनापतीअ जो, न सैनिक जो,
न अमीर जो, न ग़रीब जो,
न ज़ईफ़ जो, न जुवान जो,
ऐं न वरी अबहम जो
नएं मिलेनियम जे
पहिरिएं परजा सताक ते
ॻाया हा असां त
तुंहिंजा ही लाॾा बाबल
सारे जहां से अच्छा जा
तुंहिंजा ई स्तुती गीत
तंहिंजे ई शक्तीअ जी उपासना
तुंहिंजे ई गौरव जी गूंज
हे 26 जनवरीअ जा सूरज
उभिरण सां तोखे
एतिरी उभिरी उञ
जो पीतइ
ढुक...ढुक...ढुक...अनहद ढुकु
से बि रत-भिना!