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धर्म जी माउ / घनश्याम सागर

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वासना फॿाए कुते खां
लिकी लिकी
इनसानी पिञिरे में
हू छितो बुखायलु बघड़ु
चक पाईन्दे खुले आम
करे वेठो शिंकारु
अॿोझ अबंला जो कॾहिं
ऐं कॾहिं कंहिं सफ़ीर
मासूमिड़ीअ जो पिणि
चिचिड़जन्देचीरजन्दे फ़रियादूं
बलातकार जूं
कनि पयूं कौड़ियूं कूकूं
सरकारी दरवाज़नि ते
जिते ॿोड़ा ‘दलाल जज’
सूरदास ‘गूंगियूं कोर्टूं’
मसरूफ़ आहिनि अवल ई
हवसी ख़ानगी मजिलिसुनि में
ज़ाहिर कन्दे कन्दे फ़तवा खे
गुनहगार जी प्यारी प्यारी
धर्म जी पहिरीं माउ।