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वॾो या नंढो / हरीश करमचंदाणी
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जॾहिं हू नंढो हो
ॻाल्हाईन्दो कोन हो कूड़
कयाईं न कॾहिं
का चोरी
ॾिसी कष्ट परावनि जा
थी वेन्दो हो
दुखी
दया ऐं करुणा सां
हो ॼणु टिमटार
जॾहिं हू नंढो हो
वंडे विरहाए खाईन्दो हो
सभेई लॻन्दा हुअसि
पंहिंजा,
कंहिं खे बि न
समुझन्दो हो
धारियो
जॾहिं हू नंढो हो।
हाणे हू वॾो थी वियो आहे!