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वर्हियनि जा वर्हिय / श्रीकान्त 'सदफ़'

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वर्हियनि जा वर्हिय
ज़हर ओॻारण खां पोइ
हू हिक ॾींहुं ओचितो
थकिजी पिया

साही पटण महिल
दिमाग़ ते ज़ोरु ॾिनाऊं
त हीउ सभु छो पिए कयोसीं!

खेनि पंहिंजूं कोशिशूं याद आयूं
पर उन्हनि जा सबब
कोन याद आया
अन्देशो इहो आहि
जॾहिं हुननि जी
सघ मोटी ईन्दी
सबब न बि हून्दा
त जुड़ी पवन्दा!