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रात अखियूं पाए वेठी आ / एम. कमल
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रात अखियूं पाए वेठी आ।
चुपि राज लिकाए वेंठी आ॥
रस्ते ते उघाड़नि पेरनि लइ।
उस अखियूं विछाए वेठी आ॥
ॾंगु वंगु साॻो थसि, दुनिया।
सिर्फ़ खल मटाए वेठी आ॥
कांव बाग़ खे दांहँ ॾियनि था।
कोइल गोडु़ लाए वेठी आ॥
रत पंहिंजो वातु आ खोलियो, अॼु।
अखि सुरख़ी लाए वेठी आ॥
हर चीज़ लॻे थी पाछे जां,
दिल नज़र विञाए वेठी आ॥
हादिसनि जे सॾ पन्ध ते जीवति।
छा त रौनक़ लाए वेठी आ।
ख़्वाब तलब ॻउरिनि अखिड़ियुनि सां।
निन्ड वेरु पाए वेठी आ॥