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वजूद जो बनु महकाए वियो / एम. कमल

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वजूद जो बनु महकाए वियो।
ग़मु रूह सां भाकी पाए वियो॥

कंहिं बाज़ीगर न ॿधी नोड़ी।
वक्त जो सुरु नाचु नचाए वियो॥

को छांवं तां जीउ उथारे।
निटहणि उस ते ललचाए वियो!!

हर पल उफ़्वाहु धमाके जो।
वक्त खे बारूद बणाए वियो॥

शइर-शइर सां कल्ह राति कमल।
सोच में रॻरॻ लर्ज़ाए वियो॥