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राति हुई ॼणु दहिको दिल जो / एम. कमल
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राति हुई ॼणु दहिको दिल जो।
नांग मणी हो, चँड जो चिमको॥
हर मोड़ ते ही ॼार विछायल।
राह हुई डोहनि जो देरो॥
नांग वसिया थे, चन्दन बन में।
सुरहाण मंडलु हो ज़हरीलो॥
हाइ, किअं थधो साहु खणी तो।
सन्नाटे जो कांचु भॻो हो॥
बख़मली चुपि में तो खोलियो हो॥
अगरबत्ती भी, तो ॿारी छो।
सुधि बि हुअइ घरु काफ़ूरी हो॥
रतु रुनो याद खुश्कु लबनि ते।
रुख रंगु फिरी वियो प्यारनि जो॥