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आज़ादी-गुलामी / अर्जुन ‘शाद’

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असीं सभु
ज़ंजीरुनि में जकिड़ियल आहियूं
ज़बान ते आज़ादीअ जी गुफ़्तार
हथ, ॿांहूं
ऐं
पेर
शिकंजे में अटकियल
सभ्यता जे काग़ज़ी महलात जो
चिमकंदड़ रंगु
ऐं उन जो रौब
इज़्ज़त अफ़ज़ाईअ लाइ,
रमुनि में
समाज जा नशतर चुभियल-
ॾकंदड़ आत्मा खे खणी
बोल्टनि ऐं लैचिज़ सां
बंद कयल घर अंदर
आराम जी ज़िन्दगी बसर करण जी चाहना में
गुलामीअ जी ज़िल्लत खे
आज़ादीअ जी माना ॾेई वेठा आहियूं!