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जीवन जी उस / अर्जुन ‘शाद’

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जीवन जी हीअ निटहण उस
सूरज जा तेज़ तेज़ निराड़ ऐं अखियुनि में चुभियल
पेर पिथूं थियल
लोढे खे लताड़ण जे फिक्र में
हैरान परेशान,
शिकस्त जो अहसास खणी
कंहिं वण हेठां सुम्ही पवण जी
शिशदर इछा
थकल मांदो
हेॾाहुं होॾांहुं निहारियां थो
पर कहिं हंधि बि
छांव नज़र नथी अचे
छांव
हिन सफ़र सां वाबस्ता करणु
अबस आहे;
पेर
आटोमेटिक मशीन जियां
अॻिते हलणु शुरू कनि था!