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इन्सान जी दिल / हरूमल सदारंगाणी ‘ख़ादिम’

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मां
ऊंहादी शाम जो
थो
देहलीअ मां
उत्साह मंझां
फ़खुर विचां
साराहियां
बेशक उन इन्सान जी दिल
जो ॿाॾाए थो
ॻोढ़ा ॻाड़े थो
दुनिया जे ॿिए पासे कंहिं हिक ॿिए इंसान जी दिल जी
ख़ातिर
कंहिं कैद में
बंद
जो आहि परेशान
अखियूं लुड़िक भिनल
इन्सान
परेशान
ॿिए जी दिल लाइ।