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भाजू भॻवान / हरूमल सदारंगाणी ‘ख़ादिम’

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अखिबूट करे
पंहिंजी कमीअ-बेशीअ ते
बे-न्याउ न थी
जुल्म न करि
खुद ॾे ॾिसु
आखर में
कंहिं साणु थो भेटीं तूं पाण?
आहेई ॼाण
कहिड़ी आ तो में काणि?

अचु
वेहु
असां वटि
हिति
के चार घड़ियूं
लहु पंहिंजी ख़बर
हद-तख़लीअ खे छॾि
रहु हर्गिज़ न परे
हर हर नकरे कोशिश
हिअं
रात जे वक्ति
फूकूं ॾेई विसाइ
कमरे जी बत्ती
इसरार न करि
भाजू भॻवान न थी।