भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बया का घोंसला / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:11, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिविक रमेश |संग्रह=खुली आँखों में आकाश / दिविक रमेश }} भ...)
भाई बया
सचमुच
बहुत सुन्दर है
तुम्हारा घोंसला
...होगा, बनाया होगा मेहनत से
मैंने तोड़ लिया
सजाना था कमरा।
मुझे मालूम है
कि तुम
मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते
कोई कानून भी नहीं
जो मुझे
सज़ा दे सके।
यूँ
मेरी मर्जी के खिलाफ़
अब तुम्हारे घोंसले को
कोई हाथ तो लगाकर देखे।