भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरकार आज़माए / हूँदराज दुखायल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 13 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हूँदराज दुखायल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
थल्ह: सैना सत्याग्रह जी, सरकार आज़माए,
भलि बम बंदूक, तोंबू तलवार आज़माए।
पवंदी अहिंसा ॿल सां ताक़त न का बि पूरी,
भलि जैलख़ाना, फासियूं, सद्बार आज़माए।
जाहिल खुशामदडित्रयनि खे कूड़ा खिताब ॾेई,
ऊंधी अमन-सभा जा परचार आज़माए।
जाॻियूं जिते जूं देवियूं जैलनि वञण जे खातिर,
कींअं अहिड़े देस ते थी हथियार आज़माए।
आज़ाद आहे भारत, आज़ाद आहे भारत,
आफत जा भलि सितमगर ओज़ार आज़माए।
तरंदो शहीदी रत ते, आज़ादगीअ जो ॿेडो,
भलि कत्ल लाइ खंजर खूंख्वार आज़माए।
आहे नओं नमूनो हिन युद्ध जो ‘‘दुखायल’’,
आत्म-सत्या जो दुनिया इसरार आज़माए।