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तेसरो सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'

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तेसरो सर्ग

माल्यवान के बात सुनी केॅ कैकसी गद्-गद् भैली
आश्वासन देला के साथे सिंगारें लिपटैली

चारो वहिनों केॅ बोलबाय केॅ चारो दिशां दौड़ैलकी
पुष्प सुगन्धित लानै लेली सब वहिना केॅ कहलकी

चारो ने मिली जुली करलकै कैकसी के सिंगार
भरी दिन सजली-धजली हौ साँझै पिन्ही के हार

बनी अफसरा चली कैकसी हिरणमयी के ओर
कामोत्तेजक रूप धरी हौ झम-झम करने शोर

मुनि विश्रवा तखनी छेलै पद्माशन में स्थिर
वैदिक रात्रिसूक्त वे पढ़ि-पढ़ि सन्ध्या में गम्भीर

आँख मून्दि करै सान्ध्य वन्दना योग ध्यान में लीन
वही काल कैकसी पहुँचि केॅ होलै लज्जाहीन

वाम जांघ पर बैठ कैकसी मुनि के ध्यान बटैलकी
पुष्प सुगन्धित हारों साथैं अंग केॅ मुनि सें सटैलकी

ध्यान टूटथैं बोलै विश्रवा तोहें के...आरो कैन्हें ...
है रंङ लज्जा हीन चेहरा कभी न देखला पैन्हें

तोरा धरम के ज्ञान नैं कटियो वाम जाँघ पर आना
तोरा कटियो लाज नहीं छौं है रंङ-ढंङ अपनाना

हँसले-हँसले कैकसी बोलली, खूब धरम हम्में जानौं
हमरा हक विधि ने देने छै प्रेमी तोरा मानौं

वाम जाँघ पर प्रिया, प्रेयसी या पत्नी केॅ हक छै
हम्में शास्त्र नियम धारै छी की एकरा में शक छै?

तर्क उचित जानी केॅ विश्रवा दोसरोॅ तर्क भिड़ैलकै
उमर के अन्तर दै के हवाला आपनोॅ बात बतैलकै

बोललै, हम्में बूढ़ोॅ प्राणी तोहे छोॅ नव युवती
दू पत्नी संग बेटा-पोता कैसे लागतै युक्ति

प्रश्न सुनी कैकसी फिन बोलली एकरोॅ सुनि लेॅ उत्तर
प्रेम क्षेत्र छै एतनैं व्यापक आयु वर्ग नैं अन्तर

देश, काल आरो परिस्थिति एकरोॅ तेॅ नैं छै लेखा
यै बन्धन से परे क्षेत्र छै एकरोॅ विस्तृत रेखा

पारवती नें शिव केॅ पैलकै लक्ष्मीं पावै नारायण
दोनों जोड़ी के ऊमरोॅ के रहलै की कोय कारण?

ई रंङ तरक अकाट्य सुनी कैकसी केॅ मुनि हियाबै
अन्तिम प्रश्नों के उत्तर सुनि, मुँह पर चुप्पी लाबै

प्रश्न छेलै, ई उचित बात नैं तोरा स्वीकारै के
दू पत्नी के अछैतें तेसरी नारी केॅ धारै के

उत्तर भेलै, एक वृक्ष में बहुत लता के मेला
सभ्भै लता केॅ आश्रय दै में वृक्ष केॅ कहाँ झमेला?

यै उत्तर के बाद मुनि केॅ आरो प्रश्न नैं फूरै
मकदन्नी सें चुप्पी साधी, कैकसी तरफेॅ घूरै

मुनि केॅ देखी चुप्प कैकसी सन्मुख खाढ़ी होलै
कामाग्नि केॅ रति दानोॅ सें, शान्त करै लेॅ बोलै

मुनि जी बोललै सुनोॅ कामिनी धरम के नेम सम्हारौ
साँझ वन्दना के वक्ती केॅ तोहें नहं बिगाड़हौ

कैकसी बोलली सुनोॅ मुनीवर, आबेॅ सहै नैं पारौं
कामाग्नि ने अंग जलावै, अब तेॅ रहै नै पारौं

कटियो अब सहना मुश्किल आगिन केॅ आरो धधकना
है रंङ स्थिति में पड़ि कॅ मुश्किल ठो लागै जीना

तोहें टरकाबै छोॅ हमरा हम्में सब अब जानौं
तोरोॅ सोच तें एक बहाना आत्मा सें हौ मानौं

खूब्बे सोचिहो बैठी हमरोॅ मृत्यु के उपरान्त
हिरणमयीं के गर्भ हीं करतै काम के आगिन शान्त

धोंस दैल हम्में अभियो जाबौं हिरणमयी के धार
सभ्भे पाप ठो तोर्है विषैथौं करिहौ जतन हजार

रजो कामिनी केराू हत्या के पापोॅ में पड़भोॅ
युगोॅ युगोॅ तक तोहें मुनीवर, घोॅर नरक में सड़भोॅ

है कहथैं ही कैकसी भागली हिरणमयी के ओर
मुनी जी केॅ तबेॅ चेतन जागै, करै रुकै लेॅ शोर

ठहरोॅ-ठहरोॅ चिल्लैलै मुनीं दौड़लै साथे-साथ
हिरणमयी तक पकड़ी लेलकै कैकसी केरोॅ हाथ

कैकसी के नखरा के आगू मुनी जी होलै सुस्त
माल्यवान के सौसे योजना, बनेॅ लागलै चुस्त