सातमोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'
सातमोॅ सर्ग
लंकापति सुमेल के परिजन शूर वीर जे छेलै
जे सुमेल-माली के साथें सुरपुर रण मंे लड़लै
रण में छेलै कत्तेॅ योद्धा लंका के बलधारी
माली के संग युद्ध करै में देव सैन्य पड़ै भारी
माली आरो सुमेल मरैथें सब भेलै बेहाल
लंका खाली करी के भागै बहुते असुर पाताल
माली के नाती दशकन्धर झंपलोॅ बात है रहलै
लंकेश्वर कुबेर हार के साथैं बात उघरलै
जबेॅ दशानन विजय कथा पाताल तलक छितरैलै
तबेॅ सभे शूरवीर वहाँ से लंका घुरि-घुरि अैलै
जतेॅ कमीं हर कामों लेॅ साविक राज में छेलै
माल्यवान के देख में सबकेॅ काम बँटैलोॅ गेलै
बलशाली रणकौशल सभटा लंक सैन्य में रहलै
बांकी बचलोॅ वीर, भेदिया खरदूषण संग गेलै
लंका गढ़ के जिम्मेवारी वीर अकम्पनें लेलकै
कुशल भेदिया केरोॅ भार ठो चतुर लंकिनी ढोलकै
चोक-चौवन्द व्यवस्था देखी कैकसी लै आशीष
दुनियाँ के बीरोॅ केॅ थाहै चल पड़लै दशशीश
कें ओकरा टक्कर दियेॅ पारेॅ के पड़तै कुछ भारी
कोॅन ठियाँ सें युद्ध करैलेॅ पड़तै पहिलोॅ पारी
कत्तोॅ ठो दुनियाँ छै सौंसे के केॅ नृप वरदानी
के ललकार पेॅ सम्मुख अैतै हार आपनोॅ मानी
एखक टोह में कै दिन लागै कैकें तन केॅ सालैं
सरद, गरम, बरसात बितैनें पहुँची गेलै हिमालै
हिम पर्वत लग पहुँचि दशानन, जंह-तंह घूमेॅ लागै
देखि दिव्य सौन्दर्य वहाँ के, सुख मनमां में जागै
एक ठियां सें दुजे ठाम तक, दृष्य मनोरम पावै
शीतल, मन्द सुगन्ध वायु सें रावण हिय हर्षाबै
एक ठियाँ समतल जग्घा पर, एक तपस्विनी छेलै
रावण वै तपस्विनी देखै, कुछ नगीच तक गेलै
वहाँ एक बाला तपस्विनीं मृग-चर्मे तन झाँपै
मंत्रोच्चारों में निमग्न वें यज्ञ कुण्ड केॅ नाँपै
करि प्रदक्षिणा हवन कुण्ड समिधा डाली लहकावै
अतिरुपा सुडौल अंग लखि रावण मन ललचावै
तुरत आवि सम्मुख दशकन्धर बाला सें बतियाबै
के तोहें, केकरोॅ पुत्री, केहिकारण देह तपाबै
तोहें छो कमसीन सुन्दरी लाग्हीं अति सुकुमारी
मनवांछित पति पावै लेली करहौं तपस्या भारी
तोरोॅ सम्मुख जे खाढ़ोॅ छै लंकापति दशानन
लंकेश्वरी बनि गरव बढ़ाबोॅ करोॅ भोग के पारण
तप में विघ्न केॅ पावि तपस्विनी बालै अपनोॅ बाणी
राक्षस राज कोनोॅ दोसरोॅ ठां खोज्हौॅ अपनोॅ रानी
बृहस्पति सुत ऋषि कुशध्वज के छींका सुकुमारी
वेदवती छी विष्णु बरै लेॅ करौं तपस्या भारी
वेदवती के बात सुनी गोस्सा में आबै दशानन
वेदवती के बाल जकड़ि करै बलजोरी केॅ धारण
बलजोरी केॅ देख वेदवती कैसन्हौ बाल छोड़ाबै
फेनु लहकलोॅ यज्ञ-कुण्ड पावक में देह जराबै
यज्ञ कुण्ड पावक में जरि-जरि शाप के बात बताबै
पुनर्जन्म लै राक्षस कुल के नाश हेु फिन आबै
यज्ञ कुण्ड में धू-धू करि फिन वेदवती जलि गेलै
शाप के बात केॅ भूलि दशानन फेनूं आगू बढ़लै
दूर बढ़ी हौ कैक राज के टोहै में ही रहलै
मरुत, यमोॅ के टोह लेनें हौ मानसरोवर गेलै
मानसरोवर के बगल्है अलकापुरी रहै कुबेर
फिन कुबेर के पैर छुवै में नहीं करै वें देर
बोलै भइया वैश्रवण तों लंक खजाना देल्हौॅ
करलोॅ-धरलोॅ मांफ करों तों हमरोॅ अग्रज भेल्हौं
एक अरज लै केॅ अैलोॅ छी बात जौं हमरोॅ मानोॅ
विसकर्मा सें नया वनाबेॅ दै देॅ हमरा पुरानोॅ
हम्में कष्ट सही केॅ भैय्या अैलां तोरा आगूं
इ पुष्पक विमान पैला पर लंका तुरते भागूं
मांगला सें जों नैं देभौॅ तेॅ करबै कोनोॅ ऊपाय
हमरोॅ जिद्दीपन देखनें छोॅ फिन लड़बै दोऊ भाय
पुत्र कुबेर के उलझन लखि वरवर्णिणी आबै आगू
दशाननोॅ केॅ करै इशारा पुष्पक लै तों भागू
वरवर्णिनी के गोड़ छुवी दशकन्धर पुष्पक चढ़लै
बाँकी बचलोॅ बीर धरा के टोह के खातिर बढ़लै
अपनोॅ जानतें टोह पुरायकेॅ पुष्पक केॅ मोड़लकै
शिवजी केॅ कैलश धाम झाड़ी में आबि छोड़लकै
फिन शिव के दर्शन के खातिर जब वें पाँव बढ़ैलकै
शिव सेवक नन्दीं ने ओकरा वाँहीं ठां रोकलकै
बोललै नन्दी नैं छै केखरहौ शिव सें मिलै के बेला
नन्दी के है बात सुनी के होलै खूब झमेला
बल मद में रहि चूर दशानन बानर कही चिढ़ावै
नन्दी ने फिन शाप देकेॅ बानर सें मरण बताबैं
नन्दी केॅ छोड़ी केॅ वें फिन जोर देखावें लागलै
दोनों हाथोॅ से पर्वत कैलाश उठाबेॅ लागलै
बोलै दशानन जों शिवजीं इखनीं दर्शन नै देतै
तेॅ पर्वत संग हुनका सें लंका में दर्शन होतै
पर्वत हिलतें देखी केॅ शिवजी के ध्यान उचटलै
हुनका लातीं दबैला सें जग्घा पर पर्वत बैठलै
दशाननोॅ के पंजा पर्वत तरोॅ में फँसलोॅ रहलै
यै बीचें फिन शिव जी अपनोॅ ध्यान में डूबी गेलै
बहुत प्रयत्न छोड़ाय के करलकै पर छुटवां नैं छूटै
दरद के मारें दशकन्धर के रोवन-कानन फूटै
बहुत काल धरि कानन-रोवन चलै कैलासें धाम
शिवजीं अपनोॅ ध्यान टूटथैं देलकै रावण नाम
जैन्हैं ध्यान तोड़ी के शंकर रावण सम्मुख भेलै
अहंकार त्यागी केॅ रावण नतमस्तक भै-गेलै
हाथ जोड़ि फिन रावण बोलैं सुनोॅ त्रिलोकी नाथ
भूतनाथ तों असुर नाथ तो आरो दैत्य के नाथ
जतेॅ छै त्रिलोक में प्राणी तोहीं सबकें ईश
यही लेली तोरा शरणोॅ में अैंलोॅ छी दशशीश
ब्रह्मा जी सें वेशी तों छोॅ जल्दी ढरकै बाला
देव आरो असुरोॅ में नैं छोॅ फरक ही राखै बाला
तों अभयंकर तों प्रलयंकर शिवशंकर संहारक
हमरा पर तों कृपा करो प्रभु हम्में तोरोॅ साधक
तोहें छोॅ प्रभु अन्तर्यामी जान्हौं सब टा लेखा
ब्रह्मवंश के एक भक्त के लै लहु भक्ति-परीक्षा
जोॅ तोरोॅ आदेश मिलेॅ प्रभु भक्ति रंग बताबौं
तोरोॅ चरण के हम्में पूजा केनां करैर्छि देखाबौं
शिव जी के उत्सुकता जगलै रावण के कथनी पर
फेनूं हुनिं प्रमाण ठो खोजै रावण के करनी पर
शिवजी बोललै, रावण पैन्हें कथनी रंग बताबोॅ
फेनू आपनोॅ भक्ति सें करनी केॅ तों देखलाबोॅ
रावण बोललै हे प्रभु हम्में शिव स्तोत्र रचलियै
वै रचना में शिव चरित्र के बहुते गीत समैलियै
वै में एक टा भक्ति गीत जे ताण्डव-नृत्य बनावौं
वही गीत केॅ नित प्रति तोरे लिंगोॅ सम्मुख गाबौं
लंका अथवा जहाँ भी रहलां मनें लिंग केॅ धारी
शिव ताण्डव स्तुति में निरंतर भक्ति राखौं जारी
कथनी-करनी केॅ प्रमाण साक्षात शिवोॅ के देखाबौं
एकरा सें बढ़ि आरो भाग्य हम्में कोॅन ठियाँ सें पाबौं
है कहि रावण शिव के सम्मुख पद्माशन में बैठलै
मन में लै शंकल्प भक्ति के मंत्र ठो बाँचे लगलै
शिव-तांडव-स्त्रोत्र के पहिलोॅ मंत्र जैन्हें वें छाँटै
जोनिं गला सें मंत्र-मधुर आबै ओकरहै ही काटै
मधुर मंत्र बनी मधुर गीत सौंसे कैलाश गुंजाबै
जत्तेॅ रहै कैलाश में प्राणी गीत सुनै लेॅ आबै
शिव जी स्वयं है गीत सुनी निज पाँव लगै थिरकावै
ताण्डव नृत्त संगीत ध्वनि शिव मानस प्रिय अति भाबै
एक गला के कटथैं ही दोसरे ने मंत्र उच्चारै
दोसरोॅ मंत्र संगीत ने फिनू वहेॅ मधुरता ढारै
वोहो गला जबेॅ कटि गेलै तेॅ तेंसरें रंग समेटै
इ रंङ नोॅ टा मंत्र बाँचि वें नोॅटा गरदन काटै
अन्तिम गला के बारी में जबेॅ मंत्र गीत होय गेलै
तबेॅ सदाशिव ध्यानासन सें उठि रावण सें बोलै
बस-बस रावण खुश भेलां, देल्हौं तों कठिन परिच्छा
कटलोॅ गला जुटी जैथौं बतलाबोॅ तों निज इच्छा
बोललै, वत्स तोरों नाँकी नैं देखलां केकरोॅ भक्ति
जल्दी कोय तो बोॅर मांगिलेॅ पाबोॅ अपनोॅ शक्ति
रावण बोलै हे शिवशंकर एन्हों शक्ति पाबौं
जेकरा सें दर्शन पावै में कखनूं नहीं अघाबौं
एवमस्तु सुनि दुर्लभ वर लै रावण आगूं बढ़लै
वही समय मयपुरी के राजा मय दानव भी अैलै
बोललै रावण सें मय दावन तोरा सें कुछ काम
हम्मूं शिव के दर्शन करलां चलोॅ तों हमरोॅ धाम
मय सें परिचय आरो प्रयोजन लै पुष्पक पर बैठलै
कुछ ही काल हिम पर्वत तल में दोनों मयपुरी अैलै
राजभवन में आगत-स्वागत पावी रावण बोलै
जोनिं प्रयोजन अैलोॅ छी हौ बात ठो जल्दी खोलै
दैत्य राज मय के ही इशारां मन्दोदरी पहुँचली
सथें ओकरोॅ एक सखी भी धान्य मालिनी अैली
मन्दोदरी देखाय के मय ने रावण के बतलाबै
यै मन्दोदरी पुत्रीं तोरा आपनोॅ पति बनाबै
फेनू दोसरी देखी रावण प्रश्न आपनो फेकै
मय बोलल सामन्त के पुत्री धान्य मालिनी छेकै
रावण देखि सौन्दर्य दून्हूं के आकर्षित भै गेलै
दोन्हूं से शादी के बात हौ दैत्य राज सें बोलै
फेनू तुरत मण्डप सजि गेलै स्वजन-परिजन जुटलै
असुर-विवाहोॅ के रीति सें दोनों पत्नी भेलै
जैन्हैं बीहा के नेम टूटलै बोलै मय सें रावण
दोनों पत्नी लंका चलती साथें हमरोॅ यही क्षण
दैत्यराज भेलै निराश जबै गछै नै कुछू जमाय
भरलोॅ आँखीं पुष्पक पहुँची बेटी करै बिदाय
दिग्दर्शन करि, शिव वरदान लै चम्पक केॅ दै मोड़
दू टा पत्नी साथें रावण उड़लै लंका ओर