भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरमोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:58, 15 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कनक लाल चौधरी 'कणीक' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरमोॅ सर्ग

सुरबल के जब टोह में रावण सुरपुर दिश सिधियैलै
तेॅ पातालोॅ के राजा अहिरावण दूत ठो अैलै

यज्ञ निमंत्रण देखी कैकसी मन हीं मन मुस्कायै
दादी सुकेशी पास पहुँचि वें कुल के बात बताबै

बोलै विलोमा के पेाता अहिरावण नेतोॅ भेजै
जें अपनो परदादा के मौसी केॅ यज्ञ में खोजै

यै ली मेघनाद के साथे हम्में तोहें जैबै
वहाँ यज्ञ में पहुँची के पाताल के मजा उड़ैबै

पूत दशानन छै न यहाँ मन्दोदरीं भार उठैती
लंका केरोॅ देखरेख काका साथें मिली करती

तीनों मिल फिन चललै जेन्हैं होलै संझाकाल
सुबह-सुबह ही पहुँची गेलै हौ तीनों पाताल

अहिरावण के यज्ञ में जुटलै देश-देश के राजा
वही यज्ञ में शेष भी अैलै नागलोक के राजा

शेषनाग के साथ रहै इक अतिसुन्दर सुकुमारी
शेष नन्दिनी सुलोचना हर युवा नारी पर भारी

कैकसी मन फिन गथी गेलै हौ सुन्दर रूप निहारी
सोचै मेघनाद केॅ होवै है पत्नी बड़ी प्यारी

कैकसी के संकोच लखि फिन शेषनाग ही आबै
मेघनाद अनुरुप ही अपनीं पुत्री के वें पावै

निज पुत्री मन केॅ टटोलि फिन नागलोक के स्वामी
यै सम्बन्धोॅ में भरी देलकै वें अपनोॅ ठो हामी

फिन अहिरावण के यज्ञोॅ में हार बदललोॅ गेलै
सुलोचना आरो मेघनाद फिन पति-पत्नी भै गेलै

यज्ञ समापन अहिरावण के देखि केॅ लंका धाबै
सुलोचना के संग-संग तीनों ही लंका आबै

रावण जहिनें लंका लौटै मन्दोदरी लग जाबैं
तबेॅ मन्दोदरीं मेघनाद के ब्याह-कथा केॅ बताबैं

शेषनाग के सुता सुलोचना है सुनी रावण हरसै
सुलोचना संग मेघनाद लखि सुख, आनन्द ही बरसै

दोन्हूं केॅ आशीष देनेॅ हौ माल्यवान लग गेलै
स्वर्ण जड़ित हर घर देखी केॅ मन आनन्दित भेलै

फेनु अकम्पन आगू आबी सेना हाल बताबै
बालै सभटा सैनिक हमरोॅ युद्ध जोश में आबै

सुरपुर जाय केॅ युद्ध लड़ै ले सेना छै तैय्यार
युद्ध मुहूरत जानै खातिर पंडित करै विचार

दूत भेजि गुरु शुक्र बोलाबै मेघनाद सें बोलै
पुत्र, आबेॅ अभियान युद्ध लेॅ अच्छा अवसर भेलै

शुक्राचार्य पहुँचतें हीं तै टोलै अच्छा मुहूरत
वही मुहूरत पर जाना छै देव लोक हरसूरत

कैकसी सुनि केॅ बात पुत्र के सब दुराव केॅ टारै
रावण के आबी नगीच वें स्नेह के बन्धन डारै

दोन्हूं सम्मुख आबी बोलै बहुत देर होय गेलै
पिता माली हत्यारा सुरपति अब तालुक नै बन्हैलै

दू लोकोॅ के स्वामी बनी केॅ थोड़े आस पुराभौॅ
बड़का आस अभी बाँकी देवेन्दर बान्हीं लाभौं

जखनी पोता पूत के आगू राज माय बतलाबै
गुरु शुक्र तखनी ही तीनोॅ के नगीच चल आबै

कैकसी के आखिरी बात गुरु शुक्र के कानें गेलै
बोलै गुरु सुनोॅ राजमाय, हौ अवसर आबी गेलै

काल्हे हौ टा मुहूरत अैतै जे इक मास ठहरतै
मेघनाद के भाग्य चक्र रण में आच्छादित रहतै

सभटा ग्रह अनुकूल होय, इन्द्रोॅ केॅ हराबे योग
यज्ञ बलोॅ सें मेघनाद केॅ स्वर्ग राज के भोग

है कहि गुरु आश्रम चलि गेलै कैकसी गद्गद् होबै
रावणें फिन हुंकार भरी केॅ सेनापति बोलाबै

देसरे सुबह भेलै तैय्यारी कैकसी तिलक लगाबै
मेघनाद संग रावण केॅ दै आशीष विदा कराबै

जब चललै अभियान सैन्य के बढ़लोॅ गेलै सेनानी
सभ्भे पराजित राज सें आबै रावण के भय मानी

इ रंङ बहुत विशाल सैन्यबल जाय पहुँचलै सुरपुर
रावण के हुंकार के साथें युद्ध करै लेॅ आतुर

रावण के हुंकार सुनी फिन सुरसेना भी निकलै
दोन्हू सैन्य के बीच भयंकर युद्ध सुरपुरें छिड़लै

बहुत काल धरि युद्ध ठहरलै कोनोॅ पक्ष नैं घसकै
रावण सेना बहुत मराबै सुर सैनिक भी लस्कै

घमासान में इन्द्र बज्रें नाना सुमाली मरैलै
मेघनाद फिन क्रोध में आबी माया युद्ध में भिड़लै

जाय छिपै नभ के ऊपर ही अन्धकार केॅ ओढ़ी
अदृश होय केॅ युद्ध करै अतिघातक अस्त्र केॅ छोड़ी

सुरपतिं कत्तोॅ जत करै वें मेघनाद केॅ मारै
मगर वही क्षण मेघनादें अलगे ठां सें ललकारै

वें सभ केॅ देखै नभ सें पर ओकरा नैं कोय पावै
एक जगह केॅ तुरत छोड़ि हौ दोसरे ठियाँ नुकावै

सुरपति पड़लै बहुत काल धरि मेघनाद के फेरां
हुन्नेॅ रावण सेना से सुर सेना पड़लै घेरां

असुर सैन्य के घातोॅ से सुरसेना घायल भेलै
अस्त्र-शस्त्र सें ओकरा सभ के सौसें देह छिलैलै

त्राहि-त्राहि सब बोलेॅ लागलै भागै रस्ता लेखै
देवराजें फिन वही क्षणें अपनों सेना गत देखै

ऐरावत पर चढ़ी सुरेन्र वज्र केॅ सगरोॅ घुमाबै
सुर सेना दुर्गत देखी वें आपनोॅ ध्यान हटाबै

मेघनाद यै ताक रहै कि कखनी सुतरै वार
सुरपति के विचलन पर फेकै इक अचूक हथियार

घात बैठथैं वज्र छिठकलै जबतक वज्र सम्हारै
मेघनाद फिन वहीं क्षणेॅ सुरपति केॅ जाय पछाड़ै

ऐरावत सें आवि गिराबै पीठ चढ़ी कॅे रौंदै
दोनों हाथ पकड़ि केॅ ओकरो पीठी पीछें बान्धै

सुरपति के फिन हार मानै के आगे विकल्प नै बचलै
सुर सेना रण छोड़ी भागलै सुरपति बन्दी होलै

इन्द्रलोक पर विजय पताका रावण के फहरैलै
तीन्हूं लोक के स्वामी रावण जीतोॅ सें कहलैलै

मेघनाद के नाम तखनिये इन्द्रजीत होय जाबै
इ सम्वाद तुरन्ते रावणें लंका में पहुँचाबै

इन्द्रासन पर बैठि दशानन कोय सुन्दरि नै पावै
सभे अप्सरा रावण भय सें जंह-तंह जाय नुकावै

करी मुवैना इन्द्रलोक के बजाय जीत के डंका
मेघनाद रावण सें बन्धलोॅ अैलै सुरपति लंका