मन मूरख बोल राधे कृष्ण हरे / बिन्दु जी
मन मूरख बोल राधे कृष्ण हरे।
राधा कृष्ण हरे गोपी कृष्ण हरे॥
अधम गज गीध गणिका जिसने हँस हँस उबारे हैं,
अजामिल से पतित भी जिस पतित पावन ने तारे हैं।
उसी का नाम ले अपने नीच दास की खबर लेना,
बाँधेगा तार सुमिरन का तो एक दिन तार भी देगा।
मन मूरख बोल राधा कृष्ण हरे।
नहिं कलयुग ये कर युग है यहाँ करनी है कमालें तू,
वजन पापों का सर पर है उसे कुछ तो घटा ले तू,
जो हरिजन बन तो ऐसा बन कि हरि सुमिरन की हद कर दे,
भजन के जोर से यमराज का खाता भी रद्द कर दे।
मन मूरख बोल राधा कृष्ण हरे।
नहीं उनकी नज़र पड़ती है हरि सुमिरन की राहों पर,
पड़ा परदा है मोती 'बिन्दु' का जिनकी निगाहों पर,
दिखाई उनको क्या भगवान दें जो दिल के गन्दे हैं।
नज़र आता नहीं उनको कि जो आँखों के अंधे हैं।
मन मूरख बोल राधा कृष्ण हरे।