भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं हो सकेगा प्यार तुम्हारे-मेरे बीच / सुजाता

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:53, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुजाता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं हो सकेगा प्यार तुम्हारे-मेरे बीच
नहीं हो सकेगा प्यार तुम्हारे-मेरे बीच
क्योंकि ज़रूरी है एक प्यार के लिए एक भाषा ...
इस मामले में
धुरविरोधी
तुम और मैं।

जो पहाड़ और खाईयाँ हैं मेरी तुम्हारी भाषा के बीच
उन्हें पाटना समझौतों की लय से सम्भव नहीं दिखता मुझे अब
इसलिए तुम लौटो तो मैं निकलूँ खंदकों से
आरम्भ करूँ यात्रा
भीतर नहीं ...बाहर ...
पहाड़ी घुमावों और बोझिल शामों में
नितांत निर्जन और भीड़-भड़क्के में
अकेले और हल्के

आवाज़ भी लगा सकने की तुम्हें
जहाँ न हो सम्भावना।
न कंधे हों तुम्हारे
जिन पर मेरे शब्द पिघल जाते हैं सिर टिकाते ही
फिर आसान होता है
उन्हें प्यार में ढाल देना

नहीं हो सकता प्यार तुम्हारे मेरे बीच
क्योंकि कभी वह मुकम्मल आ ही नहीं सकता मुझ तक जिसे तुम कहते हो
आभासी रह जाता है वह।
किसी जालसाज़ ने प्रिज़्म में बदल दिया है मेरे दिमाग को
तुम्हारे शब्दों को
हज़ारों रंगीन किरनों में बिखरा देता है।