सती परीक्षा / सर्ग 6 / सुमन सूरो
गाबेॅ काव्य: बजाबेॅ बीन
हृष्ट-पुष्ट दू तरुण शिष्य केॅ,
बालमीक मुनि पास बोलाय।
कलकै मधुर राग-भासोॅ सें-
गाबोॅ रामायण तों जाय॥
जनपथ, राजमार्ग, चौरस्ता,
गली-कुची सब ठाँव-अठाँव।
वीना के मोहक स्वर-लहरी-
पर उमड़ेॅ लहराबेॅ गाँव।
जे रं नियम-विधी सें तोरा,
दोनों पढ़ने छोॅ सब पाठ।
वहेॅ-वहेॅ रं जाय सुनाबोॅ:
जग्य-भूमि के रस्ता-बाट॥
जग्यनिरत ब्राह्मण के आगूँ,
ऋत्विज तपी महर्षी लोग।
राजा के आश्रम-द्वारी पर;
कुटी-कुटी लग, जोग-अजोग॥
सब द्वारी पर, सब रस्ता में,
बीना के मधुमय लय-तान।
गूँजेॅ एक अलौकिक सुर में;
लहरेॅ रामायण के गान॥
बीस-बीस टा सर्ग रोजदिन,
पूरा करोॅ शुरू सें काव्य।
सब अतीत के लेखा-जोखा;
वर्त्तमान साथें संभाव्य॥
सब लोभोॅ सें सब लालच सें,
दूर रही डूबी लौलीन।
सातो सुर के घाट सिहारी;
सम्हरी सजग बजाबोॅ बीन॥
बन-पर्वत के फोॅल-फलेरी,
मिट्ठोॅ बड़ी, बड़ी गुनबान।
जखनी लागेॅ भूख तखनियें;
तोड़ी खाय जुड़ाबोॅ प्रान॥
बनलोॅ रेॅहेॅ मिठास गलाके,
जे सें नै भहराबेॅ राग।
ताकत संचित रेॅहेॅ देह में;
बुतलोॅ रेॅहेॅ पेट के आग॥
आरो कत्तेॅ गुनकारी छै,
यै नैमिष बन के फल-मूल।
कतनों खा सब पचले जैथों;
नै देथौं पेटोॅ में हूल॥
धन-दौलत सें सन्यासी तेॅ,
रहबे करेॅ बराबर दूर।
गायक हरदम लीन रहै छै;
गीतोॅ के मस्ती में चूर॥
ई सब सोची कल भोरे सें,
गाबोॅ काव्य बजाबोॅ बीन।
विद्या हुअेॅ प्रकाशित सगरे;
नैमिष बन के टूटेॅ नीन।
नम्र भाब सें घूमी-घूमी
सबसें करोॅ मधुर व्यवहार।
मुनी तपस्वी राजा-परजा;
जोॅर-जनानी लोकाचार॥
राजा होय छै पिता लोक के,
ई छेकै धर्मोॅ के सीख।
यही भाव सें रामचन्द्र सें,
मिलिहोॅ नैं भङठैहोॅ लीख॥
‘केकरोॅ छेका पुत्र’- तोरा सें,
जों कोय पूछेॅ एहनोॅ बात।
”बालमीकि के शिष्य“ बतैहोॅ;
समुचित उत्तर साथें-साथ॥
”जे आज्ञा“ बोली केॅ दोनों,
शिष्य करलकै दण्ड प्रनाम।
झंकारी उठलै बीना के,
तारोॅ पर रामायन गान॥
1.
राज पथ, जनपथ, हाट-बजरिया, मधुर सुर में,
गूँजै डहर-डगरिया मधुर सुर में।
बाजै बीना के तार,
धुनि लहरै हजार,
साथें श्लोकोॅ के ज्वार, मधुर में,
गूँजै जंगल-पहाड़ मधुर सुर में।
दू टा कमल-सरूप,
मानोॅ धरी नर-रूप;
गाबै गीत अनूप, मधुर सुर में,
जेना राम बाल रूप, मधुर सुर में।
दौड़ी-दौड़ी आबै लोग,
छोड़ी-छोड़ी सुख-भोग,
दोनों बाल देखै जोग, मधुर सुर में,
हरै सभे दुख-रोग, मधुर सुर में।
जन्नेॅ-जन्नेॅ बढ़ै पाँव,
तन्नेॅ -तन्नेॅ उमड़ै गाँव,
गल्ली-कोन्टोॅ ठौर-ठाँव, मधुर सुर में,
राग-भासोॅ के बहाव, मधुर सुर में।
जोगी-जती सिरमौर,
झूमै मगन बिभोर,
बूझी भाव ठौर-ठौर; मधुर सुर में,
चौंकी-चौंकी चारो ओर, मधुर सुर में।