भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलेगी दुनिया की गाड़ी उसी तरह / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:55, 30 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त शेष |संग्रह=अशुद्ध सारंग / हेमन्त शेष }} चलेगी दु...)
चलेगी दुनिया की गाड़ी उसी तरह
सवेरे-सवेरे निकलेगा सूरज
पड़े होंगे अंगीठियों में कोयले
अर्थियाँ गुज़रेंगी सड़क से
दाइयाँ होंगी प्रसव करवा कर
नए साबुनों से हाथ धोतीं और
दुनिया की गाड़ी को हरी झंडी दिखातीं