भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती / मनमोहन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 25 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनमोहन |संग्रह= }} <poem> धरती को याद है...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
धरती को याद है
अनगिन कहानियाँ
धरती के पास है
एक छुपी हुई पोटली
नाक पर लटकी है
रुपहली गोल ऐनक
पोपले मुँह में
जर्दा रखे धीमे चिराग में
तमाम रात कथरी में पैबन्द लगाती
झुर्रियों वाली बूढ़ी
नानी है धरती