भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गेंद / मनमोहन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:30, 25 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनमोहन |संग्रह= }} <poem> झन से गिरा शीश...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झन से गिरा शीशा

एक गेंद दनदनाती आई
खिड़की की राह मेज़ पर
टिप्पा खाया दवात
गिराई और
चट पट चारपाई के
नीचे भाग गई

एक जाना पहचाना सितार
कितने बरस बाद
मैं सुनता हूँ