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कैड़ा जबरा मिनख हो थें / आशा पांडे ओझा
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जद सूं थे गया हो बिदेश
मन रै आंगणै
आंसूड़ा बांध ली है आपरी ढाण
दरद ई कद कौ बैठियौ है
ढोलियो ढाळ
पग पसार बैठी है
आ बैरण ओळ्यूं
करतां-करतां आं सगळां सूं
माथा कूट
हुगी हूं काठी बावळी
थांन्नै कीं गिनार ई कोनी
कैड़ा जबरा मिनख हो थें।