भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेघ गीत / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 30 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन सूरो |अनुवादक= |संग्रह=रूप रू...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उमड़ि-घुमड़ि ऐलै घटा घनघोर कि
हरा कचोर भेलै धरती के कोर कि
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!
बन-बहियार नाँचै खेत-पथरबा
घर-गलियार डोलै सुधि बनिजरबा,
नदी-नार मचलै मरोर कि छूबी-छूबी कोर कि
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!
सुती-जागी कटो गेलै रात तिपहिया,
उठी-पुटी बैठी गेलै बुढ़िया-बहुरिया,
रोपनी के पारी गेलै शोरकि दूरबड़ी भोर कि,
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!
पाख-पखेरू मिली भोर-भिनसरबा,
डहकि-डहकि गाबै गीत-मल्हरबा,
बगिया में मचलै किड़ोर कि, नाँची-नाँची मोर कि
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!
बैन-बनिहार कान्हाँ हरबा-कोदरबा,
छल-छल हाँसी-खुशी अँखिया के कोरबा,
खम-खम चलै चित चोर कि बैला बड़ी जोर कि
हियाँ-हियाँ उठलै हिलोर!