भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माय / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:13, 30 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन सूरो |अनुवादक= |संग्रह=रूप रू...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कोय बच्चा कानै छै लागै छै वह कानै छेॅ
कोय बच्चा हँसै छै लागै छै वहेॅ हँसै छेॅ!
नूनू हमरोॅ यहाँ सें घोॅर गेलोॅ छेॅ आय
लागै छेॅ दूरोॅ सें कोय हँकाय छेॅ कही केॅ ‘माय’!
मणि से दूर मनियारा रं रही-रही फाटै छेॅ हमरोॅ परान
तेजलोॅ मदमाछी छत्ता रं लागै छै घरोॅ के सौंसे धरान
ऐङना के हूरा-गनोरा में आबेॅ के करतोॅ कमाय
आबेॅ के खटियारी करी केॅ कोन्टा में रहतोॅ नुकाय
बाल्टी के पानी में ढूकी केॅ आबेॅ के करतोॅ किड़ोर
रग्गड़ धरी केॅ कथू लेॅ आबेॅ के मचैतोॅ शोर
केकरा पर गोसै बै केकरोॅ पोछी केॅ फुसलै बै लोर
केकरोॅ बोली से रही-रही छाती में उठतै हिलोर?
सूनोॅ रं लागै छै सभे कुछ दुनियाँ के
हमरोॅ सोनोॅ बिन हाय
सूना आकाशोॅ के छाती पर दौड़तें
होतै मिट्ठोॅ रं ‘माय’।