भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ईंजोरिया / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:56, 30 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन सूरो |अनुवादक= |संग्रह=रूप रू...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उठोॅ देखोॅ हे दाय! फेनोॅ रं उजरोॅ अन्हार भेलै।
धुरि-फुरि ऐलै विसाती ईंजोरिया
छिरियैने-छिरियैने रेशम के डोरिया
नीमी पर बेली पर, चम्पा-चमेली पर
देखोॅ हे दाय! सोखरोॅ पसारी केॅ पार भेलै।
धरती केॅ देलकै सरंङोॅ के मोती
लागे छै भीती पर सूखै छै धोती
घरोॅ में ओसरा पर चौरा पर पिपनी पर
देखोॅ हे दाय! उजगी परोसी छिनार गेलै!