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देखो खड़ा किनारा / कौशलेन्द्र शर्मा 'अभिलाष'

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मत भूल तूँ कहाँ है किस तक है तुझको जाना,
जो स्वप्न देखता है सच कर के है दिखाना।
चुप चाप चलते चलते पा ले जो तेरी मंजिल,
फिर शोर तेरा होगा जिसका तूँ ही है काबिल।
तब पैर भी कटेंगे गिर जाएगा तूँ इक दिन,
पर उठना तुझको ही है इक भी सहारे के बिन।
बस लक्ष्य एक करले फिर जो रहे मिलेगा,
वह स्वप्न ना मिले तक तुझको न सोने देगा।
वह कोहिनूर भी बिन मदद के जगमगाए,
वह सूर्य भी तपा है तब ही प्रकाश पाए।
बस चल चलो मुसाफिर नहीं तेरा सहारा,
तब पास ही मिलेगा देखों खड़ा किनारा।