भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद के मुख पर / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:31, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद के मुख पर
रखा हो
जैसे अधखिला गुलाब
नन्हा - सा शिशु
देख रहा हो
पूर्व जन्म का ख़्वाब
सोता हो -मुस्काता हो
वो सुन्दरता
आधी रात
झील में जैसे
चाँद उतरता

खुलें नयन तो लगे
खुले मंदिर के
बंद कपाट
अधरों का विस्फार लगे
मानस का सुन्दरपाठ
मिट्टी की मूरत तो देखेा
बेला-हरसिंगार
एक रूप में कभी नहीं
मेवा कभी अनार