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आफ़ात का गहवारा है हस्ती मेरी / रतन पंडोरवी
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आफ़ात का गहवारा है हस्ती मेरी
वीराने से वीरान है बस्ती मेरी।
इस पर भी 'रतन' दिल को सुकूँ हासिल है
हैरान हैं सब देख के हस्ती मेरी।
अरमान भरे दिल में उतर कर देखो
उम्मीद की महफ़िल में उतर कर देखो।
ऐ चाँद की धरती में उतरने वालो
इर्फ़ान की मंज़िल में उतर कर देखो।
पंडित का धरम शैख़ का ईमान नहीं
क़ालब तो हैं दो इन में मगर जान नहीं।
रहजन है कोई और है कोई क़ातिल
इंसान हक़ीक़त में अब इंसान नहीं।