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हवा / शंख घोष
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हुआ तो हुआ, नहीं तो नहीं
रखना जीवन को
इसी तरह
यही नहीं, सीखो कुछ
रस्ते पर, गुमसुम
बैठी भिखारिन की आँखों के
धीर प्रतिवाद से
है, यह सब भी है।
मूल बंगला से अनुवाद : अरुण माहेश्वरी