भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दन्त क्षत से अधर व्याकुल.../ कालिदास
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:15, 6 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=ऋतुसंहार / कालिदास }} Category:संस्कृत ...)
|
- लो प्रिये हेमन्त आया!
दन्त-क्षत से अधर व्याकुल,
- तरुण मद से नयन धूर्णित
मीन कुच कर सधन मर्दित
- लेप सब करते विचूर्णित,
अंगना तन में सुरत ने
- मधुर निर्दय भोग पाया,
- लो प्रिये हेमन्त आया!