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मधुर विकसित पद्म वदनी... / कालिदास

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प्रिये ! आई शरद लो वर!

मधुर विकसित पद्म वदनी कास के अंशुक पहनकर,

मत्त मुग्ध मराल कलरव मञ्जु नूपुर-सा क्वणित कर

पकी सुन्दर शालियों सी देह निज कोमल सजा कर

रूप रम्या शोभनीय नववधु सी सलजं अन्तर

प्रिये ! आई शरद लो वर!