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मेरे स्वर में बिराजो / प्रमोद तिवारी

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मेरे स्वर में बिराजो
काव्य की रस वाहिनी में
हंस वाहिन!
तुम उतर आओ
मेरे स्वर में बिराजो
राग बरसाओ

धुएं और धूल में
लिपटी कहानी है
बड़ी ही बेसुरी
ये ज़िन्दगानी है
इसे दे दो मधुर वीणा
हमें है छंद रस पीना
हठीले कंठ को सुरताल में लाओ
बड़ी मुश्किल से
ये कुछ पल जुटाये हैं
जिन्हें लेकर
तुम्हारे पास आये हैं
इन्हें छू लो
करो चंदन
महक जाए
सकल उपवन
इसी उपवन में
कुछ पल को
ठहर जाओ

नदी भी बिन तुम्हारे
प्यास सहती है
सिरहाने रात में भी
धूप रहती है
विषमता ही
विषमता है
ये क्षमता भी तो
क्षमता है
बड़ी उलझी हुई
गुत्थी है
सुलझाओ