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कैसा यार कहाँ की यारी / प्रमोद तिवारी
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कैसा यार कहां की यारी
धोखा खाओ बारी-बारी
हर भेजा
बिसात का घर है
सबके सीने पर
पत्थर है
सबकी पीठ
पुरी घावों से
सबके हाथों में
खंज़र है
संबंधों की है
बलिहारी
मीठी नदिया
हो गयी खारी
समझा बहुत
समझ ना पाया
कौन है अपना
कौन पराया
लेकिन इतना
जान चुका हूँ
जब तक धूप
तभी तक साया
दुआ सलाम
मोहल्लेदारी
बिना दवा की है
बीमारी
मन पे तन-तन पे हैं कपड़े
कपड़े सबके
चिथड़े-चिथड़े
शराबोर हैं
कच्चे रंग में
घूम रहे हैं
अकड़े-अकड़े
कैसा फाग
कहां की गारी
सूरत सबकी कारी-कारी
रिश्ते नाते प्यारे-प्यारे
चला रहे हैं
खुलकर आरे
जिओ अकेले
मरो अकेले
इक तारे पे
झूम के गा, रे!
मंगल भवन अमंगल हारी
पूजा बेंचे रंगे पुजारी