भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उल्टे सीधे पांव / प्रमोद तिवारी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:39, 23 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने साथ-साथ
चलता है
नाम शहर का
गांव का
हमको तो
खयाल रखना है
उल्टे-सीधे पांव का

अपने पास
पसीने वाली
रोटी है
सोंधी-सोंधी
अपनी जंग पेट से
बिलकुल
सीधी-सीधी होती है
अब तक तो मैं ही
जीता हूँ
काट नहीं
इस दांव का

हवा हमारे
कहने में है
पानी रहे रवानी में
धरती से अम्बर तक
हम भी
शामिल हुए
कहानी में
ठंड हमें तोहफा देती है
जलते हुए अलाव का

जो महकें
वो चुभें सांस में
ऐसी फुलवारी से क्या
मौके पर
विश्वास डिगा दे
ऐसी तैयारी से क्या
हमको तो लहरों ने साधा
काम नहीं
कुछ नाव का

मंचों पर आ गये
कृपा है
आगे यही प्रार्थना है
मंचों से
पंचों तक पहुंचे
बाकी यही साधना है
धूप-धूप चलकर
आये तब
पता मिला है
छांव का