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सिखाये पहला-पहला प्यार / प्रमोद तिवारी

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रूप न जाने
रंग न जाने
भले बुरे का
भेद न माने
फिर भी पाठ हजार
सिखाये
पहला-पहला प्यार

आंखों के रस्ते दिल के
गलियारे खुलते हैं
गलियारों में
फूलों के संग
कांटे खिलते हैं
कांटों पर छाया
खुशबू का जादू
रहता है
मेरे संग खिलो
कलियों से
भंवरा कहता है
भंवरों की
गुन-गुन में
छम-छम
पायल की झंकर
सुनाये पहला-पहला प्यार

मैंने उससे कहा
कभी तो मिलो
अकेले में
बोली गांव
चले आना
सावन के मेले में
मैंने कहा
कि मेले में तो
बड़ा झमेला है
बोली
तुम क्या जानो
मेला
बहुत अकेला है
यही अकेलापन
होता है
मेले का आधार

बोली ढाई आखर से है
बड़ा नहीं कोई
इसीलिये तो
मुझसे ज्यादा
पढ़ा नहीं कोई
मैंने उससे कहा
नयन की भाषा
पढ़ो कभी
चुपके-चुपके
छत की
सभी सीढ़ियाँ
चढ़ो कभी
बोली छत पे
चुपके-चुपके
चोरों सा व्यवहार
लजाये पहला-पहला प्यार

प्यार अचानक घटने वाली
ऐसी घटना है
पत्थर की छाती से फूटा
मीठा झरना है
है पहला विद्रोह
अकारण
प्राण लुटाने का
सपनों की खातिर
चट्टानों से टकराने का
ये वो शै है
जो मझधारों को
कर दे पतवार
निभाये पहला-पहला प्यार