Last modified on 23 जनवरी 2017, at 12:56

प्राण मत घबराना / प्रमोद तिवारी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:56, 23 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम सूखी हुई नदी जैसे
हम जैसे सूने घाट
हमारा जनम-जनम का साथ
प्राण मत घबराना!

प्यासे मृग छौने के भ्रम को
भ्रम रहने दो
भ्रम रहने दो
रेतीली सौगन्धों में हम
दोनों को जीने मरने दो
तुम उजड़े हुए मठों जैसे
हम अभिशापित विश्वास
हमारा जनम-जनम का साथ-
प्राण मत घबराना

हर शाम हमारे हाथों में
आ जाता है टूटा दरपन
मुझको तुम तक
ले आता है
टूटे तारों का
सम्मोहन
तुम खोयी हुई भोर जैसे
हम अलसाये जलजात
हमारा जनम-जनम का साथ
प्राण मत घबराना।

मत सकुचाओ
हो जाने दो
तन को सागर
मन को मंथन
क्या पा-पुण्य को
स्वीकारे
सँवरा पतझर
बिखरा सावन
तुम उड़ते हुए धुएं जैसे
हम जैसे फैली-राख
हमारा जनम-जनम का साथ
प्राण मत घबराना!