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बहुत सजाना संवर जाना / प्रमोद तिवारी
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बहुत सजना संवर जाना
ही होता है बिखर जाना
कभी जब बाग़ में
हम तुम टहलते
फूल चुनतेथे
अकेले बैठकर गुमसुम
महकते स्वप्न बुनते थे
कहां मालूम था
ये फूल ही
टूटे सपन से हैं
कहां मालूम था
ये स्वप्न ही
टूटे सुमन से हैं
सुमन चुनना
सपन बुनना
ही होता है संवर जाना