भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खूब रोया एक सूखा पेड़ / प्रमोद तिवारी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 23 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
याद कर
अपनी सघन छाया
खूब रोया
एक सूखा पेड़
पेड़ जिसकी छांव से
हारे थके रिश्ते जुड़े
पेड़ जिसकी देह से
होकर कई बादल उड़े
कह रहा है राख होना है
फूल हो
या एक सूखा पेड़
हर पखेरू चाहता है
डाल पर पत्ते घने
और उनकी ओट में
घर के लिए तिनके बुनें
किन्तु मौसम ने
नहीं सोचा
और बोया
एक सूखा पेड़