भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में साँप / 4 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
साँप
तोरा तेॅ गल्फर में जहर होय छौ
वैं कहलकै आदमी केॅ
माथासे गोर तक
विष ही विष छै।
अनुवाद:
साँप
तुम्हारे तो गल्फर में जहर होता है
उसने कहा/लेकिन आदमी को
सर से पाँव तलक
जहर ही जहर है।